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“नेपोटिज्म नहीं मेहनत दिलाती है जगह, वरना शाहरुख और अक्षय कहां होते?” – राजपाल यादव का बड़ा बयान

बॉलीवुड में नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) को लेकर अक्सर चर्चाएं होती रहती हैं। कई सितारे इसे लेकर अपने अनुभव साझा करते हैं, तो कई बार विवाद भी खड़े होते हैं। लेकिन इस बार कॉमेडी किंग राजपाल यादव ने इस बहस को एक नया मोड़ दिया है। उनका मानना है कि बॉलीवुड में नेपोटिज्म नहीं, मेहनत ही सबसे बड़ी कुंजी है।

राजपाल यादव ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा:

अगर बॉलीवुड में नेपोटिज्म चलता, तो शाहरुख खान, अक्षय कुमार, आयुष्मान खुराना और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे लोग आज सुपरस्टार नहीं होते।

उनके इस बयान ने इंडस्ट्री के उन पहलुओं को उजागर किया है, जो अक्सर बहस में दब जाते हैं – स्ट्रगल, टैलेंट और डेडिकेशन


🎭 राजपाल यादव का सफर: एक मिसाल

राजपाल यादव खुद भी बिना किसी फिल्मी बैकग्राउंड के इस इंडस्ट्री में आए थे। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने धीरे-धीरे छोटे रोल्स से शुरुआत की और फिर अपनी कॉमिक टाइमिंग और एक्टिंग टैलेंट से दर्शकों के दिलों में जगह बना ली।

उन्होंने कहा,

“मैं लखनऊ से मुंबई आया था सिर्फ एक बैग और सपनों के साथ। अगर यहां नेपोटिज्म होता, तो मुझ जैसे हजारों एक्टर्स कभी सामने नहीं आते।”


🎬 मेहनत से बने सुपरस्टार्स

राजपाल ने इंटरव्यू में उन सितारों के नाम लिए जिन्होंने बिना किसी गॉडफादर के फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई:

  • शाहरुख खान: एक टीवी एक्टर से बॉलीवुड का ‘किंग खान’ बनने तक का सफर किसी प्रेरणा से कम नहीं।
  • अक्षय कुमार: वेटर और मार्शल आर्ट ट्रेनर से सुपरस्टार बनने का सफर।
  • नवाजुद्दीन सिद्दीकी: संघर्षों से भरी पृष्ठभूमि से निकलकर क्रिटिकली एकनॉलेज्ड एक्टर बने।
  • पंकज त्रिपाठी, आयुष्मान खुराना और विक्की कौशल जैसे कई नाम भी शामिल हैं जिन्होंने टैलेंट और मेहनत से मुकाम हासिल किया

🧬 क्या नेपोटिज्म का वजूद ही नहीं?

राजपाल यादव यह मानते हैं कि नेपोटिज्म पूरी तरह से गायब नहीं है, लेकिन यह किसी की सफलता या असफलता का निर्णायक कारण नहीं है।

“अगर कोई स्टारकिड है तो उसे लॉन्च मिलने में आसानी हो सकती है, लेकिन टिकना उसके टैलेंट पर ही निर्भर करता है। जनता आज समझदार है – वो सिर्फ टैलेंट को स्वीकारती है।”


🎥 स्टारकिड्स बनाम आउटसाइडर्स: बदलता नजरिया

बीते कुछ वर्षों में फिल्म इंडस्ट्री में बदलाव आया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया ने नए टैलेंट को मौका देने का मंच दिया है। ऐसे में आउटसाइडर्स की पहुंच और स्वीकार्यता पहले से कहीं ज्यादा है।

राजपाल यादव का मानना है कि “अब समय बदल चुका है। दर्शक कंटेंट देखते हैं, ना कि सिर्फ चेहरा। यही वजह है कि मिड-लेवल और नए एक्टर्स को भी बड़ा मंच मिल रहा है।”


📢 जनता ही असली फैसला करती है

राजपाल यादव ने कहा कि बॉलीवुड में किसी को लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो उसके लिए केवल कड़ी मेहनत, सीखने का जज्बा और धैर्य ही सबसे जरूरी गुण हैं।

उन्होंने कहा:

“नेपोटिज्म सिर्फ एक शुरुआत दे सकता है, लेकिन दर्शकों का प्यार और स्क्रीन पर टिके रहना पूरी तरह आपकी काबिलियत पर निर्भर करता है।”


🧾 निष्कर्ष

राजपाल यादव का बयान बॉलीवुड के उस पक्ष को सामने लाता है जहां टैलेंट, मेहनत और लगन ही आपको आगे ले जाती है। उन्होंने जिस तरह से आउटसाइडर्स की सफलता को गिनाया, वो यह साबित करता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अब भी काबिल लोगों के लिए दरवाज़े खुले हैं। नेपोटिज्म हो या न हो, असली पहचान आपके काम और दर्शकों के प्यार से बनती है।


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